छठ पूजा २०२०

Nov. 18, 2020, 11:03 a.m. by Karuwaki Speaks ( 665 views)

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१८ नवंबर से छठ पूजा का महापर्व शुरू हो रहा है. कार्तिक मास के शुक्‍ल पक्ष की षष्‍ठी से शुरू होने वाले इस व्रत को छठ पूजा, सूर्य षष्‍ठी पूजा और डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है. वहीं इसमें व्रती महिलाएं ३६ घंटे का कठिन निर्जला व्रत रखती है और पारण के दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर ही भोजन करती हैं. कई जगह पुरुष भी छठ का व्रत रखते हैं.

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बिहार के अलावा यूपी, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल और नेपाल में भी धूमधाम से छठ का त्योहार मनाया जाता है. छठ पूजा की शुरुआत नहाय खाय से होती है, जो कि पारण तक चलता है. इस साल छठ १८ नवंबर से शुरू हो रहा है और २१ नवंबर को समाप्त होगा।

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छठ में साफ-सफाई का खास ख्याल रखा जाता है, इसलिए इस दिन व्रत करने वाले को साफ सुथरे और धुले कपड़े ही पहनने चाहिए. पौराणिक मान्यता के मुताबिक, छठी मईया, सूर्य देव की बहन हैं. उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना और उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर (तालाब) के किनारे छठ की पूजा की जाती है. वहीं षष्ठी मां यानी कि छठ माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं. इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है और इसलिए छठ पूजा की जाती है.

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१८ नवंबर नहाय-खाय- नहाय-खाय से ही छठ पूजा का प्रारंभ होता है. छठ पूजा का व्रत रखने वाले लोग नहाय-खाय के दिन स्नान आदि के बाद सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं. इसके बाद वे छठी मैया का व्रत रखते हैं. सुबह को सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही वे पारण करते हैं. व्रत से पूर्व नहाने के बाद सात्विक भोजन ग्रहण करने को ही नहाय-खाय कहा जाता है. नहाय-खाय के दिन व्रती मुख्यत: लौकी की सब्जी और चने की दाल का उपयोग भोजन में करते हैं. जो लोग छठ व्रत रखते हैं, उनके भोजन करने के बाद ही परिवार के अन्य सदस्य चतुर्थी के दिन भोजन करते हैं.

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१९ नवंबर खरना- छठ महापर्व के दूसरे दिन खरना होता है. खरना को लोहंडा भी कहा जाता है. छठ में खरना का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रत करने वाले व्यक्ति छठ पूजा पूर्ण होने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करता है. छठ में खरना का अर्थ है शुद्धिकरण. यह शुद्धिकरण केवल तन न होकर बल्कि मन का भी होता है. खरना के बाद व्रती 36 घंटे का व्रत रखकर सप्तमी को सुबह अघर्य देता है. खरना के दिन खीर, गुड़ तथा साठी का चावल इस्तेमाल कर शुद्ध तरीके से बनायी जाती है .

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