छठी मैया की आराधना का पर्व छठ पूजा बिना सूर्य को अर्घ्य दिए पूरा नहीं होता है। छठ व्रत का पहला सूर्य अर्घ्य षष्ठी तिथि को दिया जाता है। बता दें, आज छठ का पहला अर्घ्य सूर्य भगवान को दिया जाएगा। यह अर्घ्य अस्ताचलगामी सूर्य को दिया जाता है। जिसमें जल को दूध में डालकर सूर्य की अंतिम किरण को अर्घ्य दिया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह अर्घ्य भगवान सूर्य की पत्नी प्रत्यूषा को दिया जाता है।
हिंदू धर्म में यह पहला ऐसा त्योहार है जिसमें डूबते सूर्य की पूजा की जाती है. छठ के तीसरे दिन शाम यानी सांझ के अर्घ्य वाले दिन शाम के पूजन की तैयारियां की जाती हैं. इस बार शाम का अर्घ्य 20 नवंबर को है. इस दिन नदी, तालाब में खड़े होकर ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. फिर पूजा के बाद अगली सुबह की पूजा की तैयारियां शुरू हो जाती हैं.
चौथे दिन सुबह के अर्घ्य के साथ छठ का समापन हो जाता है. सप्तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली उपासना की प्रक्रिया को दोहराया जाता है. विधिवत पूजा कर प्रसाद बांटा जाता है और इस तरह छठ पूजा संपन्न होती है. यह तिथि इस बार 21 नवंबर को है.
छठ पूजा में वैसे तो कई तरह के प्रसाद चढ़ाए जाते हैं लेकिन उसमें सबसे अहम ठेकुए का प्रसाद होता है, जिसे गुड़ और आटे से बनाया जाता है।
छठ की पूजा इसके बिना अधूरी मानी जाती है। छठ के सूप में इसे शामिल करने के पीछे यह कारण है कि छठ के साथ सर्दी की शुरुआत हो जाती है और ऐसे में ठंड से बचने और सेहत को ठीक रखने के लिए गुड़ बेहद फायदेमंद होता है। छठ की पूजा में चावल के लड्डू भी चढ़ाए जाते हैं। इन लड्डुओं को विशेष चावल से बनाया जाता है। इसमें इस्तेमाल होने वाले चावल धान की कई परतों से तैयार होते हैं।
आपको बता दें कि इस दौरान चावलों की भी नई फसल होती है और इसलिए जैसा माना जाता है कि छठ में सूर्य को सबसे पहले नई फसल का प्रसाद अर्पण किया जाना चाहिए इसलिए चावल के लड्डू को भोग में चढ़ाने की परंपरा है।
इस तरह देखा जाए तो जो भी छठ पूजा में प्रसाद चढ़ता है उन सब चीजों को सेहत के लिए बेहद लाभदायक माना जाता है।