शारदीय नवरात्रि के बाद दशमी तिथि को दशहरा का त्योहार मनाया जाता है. दशहरे की तैयारियां काफी समय पहले से होनी शुरू हो जाती है. शारदीय नवरात्रि पर जगह- जगह रामलीला का आयोजन होता है और नाटक के रूप में भगवान श्री राम और रावण के युद्ध को दर्शाया जाता है. दशहरे का यह त्योहार हर साल लोगो को यह बताने के लिए मनाया जाता है कि किस प्रकार अच्छाई ने बुराई पर जीत हासिल की थी और बुराई कितनी भी बड़ी हो उसे अच्छाई के सामने हारना ही पड़ता है. जिससे लोग समाज में कोई भी बुरा कार्य करने से डरें.
दशहरे के इस पर्व को विजयादशमी भी कहा जाता है, इसे जश्न का त्यौहार कहते हैं आज के वक्त में यह बुराई पर अच्छाई की जीत का ही प्रतीक हैं. बुराई किसी भी रूप में हो सकती हैं जैसे क्रोध, असत्य, बैर,इर्षा, दुःख, आलस्य आदि. किसी भी आतंरिक बुराई को ख़त्म करना भी एक आत्म विजय हैं और हमें प्रति वर्ष अपने में से इस तरह की बुराई को खत्म कर विजय दशमी के दिन इसका जश्न मनाना चाहिये, जिससे एक दिन हम अपनी सभी इन्द्रियों पर राज कर सके.
यह बुरे आचरण पर अच्छे आचरण की जीत की ख़ुशी में मनाया जाने वाला त्यौहार हैं.सामान्यतः दशहरा एक जीत के जश्न के रूप में मनाया जाने वाला त्यौहार हैं. जश्न की मान्यता सबकी अलग-अलग होती हैं. जैसे किसानो के लिए यह नयी फसलों के घर आने का जश्न हैं. पुराने वक़्त में इस दिन औजारों एवम हथियारों की पूजा की जाती थी, क्यूंकि वे इसे युद्ध में मिली जीत के जश्न के तौर पर देखते थे. लेकिन इन सबके पीछे एक ही कारण होता हैं बुराई पर अच्छाई की जीत. किसानो के लिए यह मेहनत की जीत के रूप में आई फसलो का जश्न एवम सैनिको के लिए युद्ध में दुश्मन पर जीत का जश्न हैं.
यह पौराणिक कथा के अनुसार, देवी सीता का रावण ने हरण कर लिया था. मर्यादा परुषोत्तम राम ने देवी सीता की रक्षा के लिए अधर्म और अन्यायी रावण को युद्ध के लिए ललकारा और दस दिनों तक उससे युद्ध किया. भगवान राम ने आश्विन शुक्ल की दशमी तिथि को मां दुर्गा से प्राप्त दिव्यास्त्र की मदद से रावण का वध किया था. राम जी ने रावण पर विजय प्राप्त की थी और यह दशमी तिथि भी थी ऐसे में इस दिन को विजयदशमी कहा जाता है.